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भंवर में BJP… Congress को OBC-Dalits से आस; CM के गृह क्षेत्र में रोचक हुई जंग

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हिमाचल और पंजाब की सीमा से सटे नारायणगढ़ में इस बार भाजपा भंवर में फंसी हुई है जबकि कांग्रेस को यहां ओबीसी व दलितों से आस है। सीएम नायब सैनी का गृहक्षेत्र होने व सैनी समाज की संख्या ज्यादा होने के कारण भाजपा पहले यहां से खुद को मजबूत मान रही थी लेकिन दो दिन पहले हुई कांग्रेस नेता राहुल गांधी की रैली के बाद कांग्रेस उत्साहित नजर आती है।

इस उत्साह से समीकरण कितने बदलेंगे, इसका जवाब तो आठ अक्तूबर को ही मिलेगा लेकिन इतना तय है कि अब मुकाबला टक्कर का नजर आने लगा है। कांग्रेस की तरफ से यहां मौजूदा विधायक शैली चौधरी व भाजपा से डॉ. पवन सैनी मैदान में हैं।

कुमारी सैलजा गुट की मानी जाती शैली के लिए किसी बड़े प्रचारक ने बीते कल ही पहली रैली की है जबकि पवन सैनी पीएम नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह के मंच पर दिख चुके हैं। इनके अलावा, बसपा से हरबिलास रज्जूमाजरा भी मुकाबले में बने हुए हैं।

उनके लिए बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे आकाश आनंद रैली करके जा चुके हैं। मंगलवार को मायावती के छछरौली में आयोजित कार्यक्रम में भी रज्जूमाजरा दिखे। तीनों प्रत्याशियों के लिए दिग्गजों के आने के बाद यहां मुकाबला त्रिकोणीय बन गया है, जिसमें किसी का भी भाग्य चमक सकता है।

इस सीट पर ओबीसी और दलित मतदाताओं की अच्छी संख्या है। राहुल गांधी ने अपने भाषण में इन वर्गों को साधने की कोशिश की थी। इसके साथ ही यहां अधिकतर लोग खेती पर निर्भर हैं। ऐसे में किसानों का विरोध भी भाजपा को झेलना पड़ रहा है। नारायणगढ़ शुगर मिल पर किसानों का बकाया का मुद्दा भी हावी है।

तीनों प्रत्याशी भ्रष्टाचार, एनडीसी के मुद्दा, अवैध खनन, ओवर लोडिंग और चिकित्सकों की कमी के मुद्दे पर ही एक-दूसरे को घेर रहे हैं। अधिवक्ता रवि कुमार बताते हैं कि यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही चुनौतियां हैं। यहां काफी लोग जमींदार वर्ग से जुड़े हैं मगर उन्हें सरकार से अधिक लाभ नहीं मिला।
विकास के लिए भी हमेशा यही बात रही है कि नारायणगढ़ की सीट विपक्ष के पास रही है, ऐसे में राह किसी के लिए आसान नहीं दिख रही। किराना व्यापारी और गुर्जर सभा के पूर्व प्रधान सतपाल टोका बताते हैं कि नारायणगढ़ में डॉक्टरों की कमी लोगों के लिए परेशानी है।

छोटी-मोटी बीमारी के उपचार के लिए अंबाला जाना पड़ता है। विपक्ष की विधायक होने के कारण विकास कार्य उतनी गति से नहीं हो सके। सीमेंट व्यापारी राधेश्याम बताते हैं कि एनडीसी ने लोगों को जो रुलाया है वह कभी नहीं भूल सकते। विकास के नाम पर मुख्य सड़कों को छोड़कर अन्य स्थानों पर संपर्क मार्गों की खराब हालत है। ओवरलोडिंग डंपरों से हरदम जान का खतरा बना रहता है।
सबसे ज्यादा कांग्रेस जीती, इनेलो-बसपा का भी रहा है आधार
नारायणगढ़ में 1967 से लेकर अब तक पांच बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। वर्ष 1967 से 1968 में लाल सिंह तो 1972 में कांग्रेस से जगजीत सिंह विधायक बने। इसके बाद वर्ष 1977 लाल सिंह जनता पार्टी से तो 1982 में लाल सिंह निर्दलीय विधायक बने। इसके बाद वर्ष 1987 में जगपाल सिंह निर्दलीय विधायक चुने गए।
वर्ष 1991 में बसपा से सुरजीत कुमार, 1996 में हरियाणा विकास पार्टी से राजकुमार, वर्ष 2000 में इनेलो से पवन कुमार, वर्ष 2005 और 2009 में कांग्रेस से रामकिशन गुर्जर, वर्ष 2014 में मोदी लहर में नायब सैनी तो 2019 में कांग्रेस से शैली चौधरी विधायक बनीं। बसपा-इनेलो का भी यहां जनाधार रहा है। उनका गठबंधन बड़े दलों का का खेल बिगाड़ सकता है।
तीनों प्रत्याशियों के अपने दावे और वादे
नारायणगढ़ को हम स्वच्छ और सुंदर हलका बनाने का संकल्प लेकर मैदान में उतरे हैं। हम अपने कार्यों के लिए जनता के बीच जा रहे हैं। जहां तक किसानों के विरोध की बात है तो यह तो कुछ ही लोग हैं जो विरोध कर रहे हैं। पूरा प्रदेश यह हालात देख रहा है। मैं खुद भी किसान हूं।-पवन सैनी, प्रत्याशी, भाजपा

अपने कार्यकाल के दौरान क्षेत्र में काफी कार्य करने के प्रयास किए हैं, मगर विपक्ष में बैठे होने के कारण भी काफी समस्या आई। अब सरकार में आने पर नारायणगढ़ में खुलकर विकास कार्य कराए जाएंगे। -शैली चौधरी, प्रत्याशी, कांग्रेस

अस्पताल में चिकित्सक, स्कूलों में शिक्षा और बेरोजगारी बड़ी समस्या है। सड़कें भी टूटी हैं। बीते 10 वर्षों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही विधायक बने, मगर लोगों के लिए कुछ नहीं किया। उनकी कोठियां पंचकूला-चंडीगढ़ में हैं। ये लोग तो चुनाव के समय आते हैं। -हरबिलास रज्जूमाजरा, प्रत्याशी, बसपा