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Ravana कितना बड़ा ज्ञानी था, कैसे मिला Brahmarakshasa नाम और क्यों शनि देव को बंदी बनाया

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पूरे देश में नवरात्र की धूम है. देवी दुर्गा की आराधना की जा रही है, क्योंकि लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान राम ने नौ दिनों तक माता रानी के चंडी स्वरूप की आराधना की थी. दसवें दिन मां के आशीर्वाद से रावण का अंत किया था. तभी से नौ दिनों तक मइया की आराधना और 10वें दिन रावण का दहन किया जाता है. पर क्या आपको पता है कि रावण का जन्म कहां हुआ था? वह कितना ज्ञानी था? आइए जानने की कोशिश करते हैं।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण पिता के पक्ष से ब्राह्मण और नाना के पक्ष से क्षत्रीय राक्षस था. इसीलिए उसे ब्रह्मराक्षस की संज्ञा भी दी जाती है. रावण के दादा ऋषि पुलस्त्य ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों और सप्तऋषियों में से एक थे. उनके पुत्र ऋषि विश्रवा की पत्नी क्षत्रीय राक्षस कुल की कैकसी ने रावण को जन्म दिया था।

कैकसी के पिता दैत्य राज सुमाली (सुमालया) थे. ऋषि विश्रवा की दूसरी पत्नी से कुबेर का जन्म हुआ था. रावण ने अपने पिता ऋषि विश्रवा के संरक्षण में वेदों और पवित्र ग्रंथों के साथ ही साथ क्षत्रियों के ज्ञान और युद्धकला में भी महारत हासिल की थी।

उत्तर प्रदेश में यहां माना जाता जन्म स्थान

उत्तर प्रदेश में गौतमबुद्ध नगर के ग्रेटर नोएडा से करीब 15 किमी दूर एक गांव है बिसरख. माना जाता है कि इसी स्थान पर रावण का जन्म हुआ था. इसलिए यहां पर दशहरा भी नहीं मनाया जाता।

मीडिया रिपोर्ट्स में इसका कारण यह बताया गया है कि कई दशक पहले बिसरख के लोगों ने रावण का पुतला जलाया था. तब वहां एक-एक कर कई लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद लोगों ने रावण की पूजा की, जिससे मौतों का सिलसिला रुका था।

शिव-पार्वती की लंका भाई से छीनी

लंका को विश्वकर्मा ने शिव-पार्वती के लिए बनाया था, जिसे ऋषि विश्रवा ने यज्ञ के बाद शिव से दक्षिणा में मांग लिया था. इस ऋषि पुत्र कुबेर ने सौतेली मां कैकेसी के जरिए रावण को संदेश दिया कि लंका अब उनकी हो चुकी है. हालांकि, रावण चाहता था कि लंका केवल उसी की रहे।

इसलिए उसने कुबेर को धमकी दी कि उसे बलपूर्वक छीन लेगा. पिता विश्रवा जानते थे कि शिव की तपस्या के बाद रावण पर किसी का वश नहीं चलने वाला है. इसलिए कुबेर को सलाह दी कि रावण को लंका दे दें. लंका पर इस तरह से रावण का कब्जा हो गया।

चारों वेदों का ज्ञाता, महान संगीतज्ञ था लंका का राजा

रावण जितना बलशाली था, उतना ही विद्वान भी. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि युद्ध में राम का बाण लगने के बाद जब वह अंतिम सांसें ले रहा था भगवान राम ने खुद लक्ष्मण को उससे ज्ञान हासिल करने के लिए कहा था. तब लक्ष्मण लंकाराज के सिर के पास बैठ गए. रावण ने लक्ष्मण को पहला ज्ञान यही दिया था कि अगर गुरु से ज्ञान चाहिए तो हमेशा उसके चरणों में बैठना चाहिए. यह ज्ञान परंपरा आज भी भारत में विद्यमान है।

रावण सामवेद में तो निपुण था ही, बाकी के तीनों वेदों का भी उसे ज्ञान था. वेदों के पढ़ने के तरीके यानी पद पथ में उसे महारथ हासिल थी. लंका के राजा रावण ने शिवतांडव, प्रकुठा कामधेनु और युद्धीशा तंत्र जैसी तमाम रचनाएं कीं।

संगीत में भी रावण किसी से कम नहीं था. धार्मिक ग्रंथ बताते हैं कि रुद्र वीणा बजाने में रावण को हरा पाना शायद किसी के लिए संभव नहीं था. दुनिया को वायलन जैसा वाद्ययंत्र रावण ने ही दिया, जिसे रावणहथा कहा जाता था।

Ravana Burning Effigy

चिकित्सा विज्ञान पर कई किताबें लिखीं

रावण चिकित्सा विज्ञान का बड़ा जानकार था. आयुर्वेद पर तो उसने अर्क प्रकाश नाम से एक पुस्तक भी लिखी थी. उसे ऐसे चावल बनाने आते थे, जिसमें खूब पोषक तत्व होते थे।

मान्यता है कि यही चावल वह माता सीता को अशोक वाटिका में देता था. पत्नी मंदोदरी के कहने पर आयुर्वेद के ज्ञान पर आधार पर रावण ने स्त्री रोग और बाल चिकित्सा पर कई किताबें लिखी थीं. इनमें सौ से ज्यादा बीमारियों की चिकित्सा के बारे में बताया गया है।

ज्योतिष शास्त्र में माहिर, ग्रह नक्षत्रों को भी वश में कर लिया था

रावण ज्योतिष शास्त्र में माहिर था. यहां तक कि पुत्र मेघनाद के जन्म से पहले उसे ग्रह नक्षत्रों को खुद के हिसाब से सजा लिया था. उसका मानना था कि ऐसी स्थिति में जन्म लेने वाला उसका पुत्र अमर हो जाएगा. हालांकि, आखिरी समय में शनिदेव ने अपनी चाल बदल दी थी. इससे नाराज होकर उसने शनिदेव को ही बंदी बना लिया था. ज्योतिष शास्त्र पर भी रावण ने कई पुस्तकों की रचना की थी।