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Amritsar का बड़ा हनुमान मंदिर: नवरात्रि में यहां देश-विदेश से बच्चों को लंगूर बनाकर लाते हैं लोग

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शारदीय नवरात्रि का आज से आगाज हो गया है. देश भर के अलग-अलग राज्यों में मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जा रही है. पंजाब के अमृतसर में भी नवरात्रि की धूम है।

यहां के प्राचीन हनुमान मंदिर में नवरात्रि में एक विशेष तरह का में लंगूर मेला लगता है. इस प्राचीन लंगूर मेले के दौरान लाखों लोग श्री बड़ा हनुमान मंदिर में दर्शन करने आते हैं।

इस मेले के दौरान भक्त अपने बच्चों को लंगूर की पोशाक पहनाकर भगवान हनुमान के चरणों में माथा टेकने के लिए लाते हैं और बजरंगबली का आशीर्वाद लेते हैं. इस मंदिर का इतिहास रामायण कालसे भी जुड़ा हुआ है।

मंदिर के पंडित मेघ शाम जी ने बताया कि इस बार शारदीय में 3 अक्टूबर से इस ऐतिहासिक मेले का आयोजन किया जा रहा है. इस मेले की पद्धति के अनुसार जो लोग अपने बच्चों को लंगूर बनाते हैं, वे चाकू का कटा भोजन नहीं करते, बिस्तर पर नहीं सोते आदि।

उन्होंने बताया कि मेले के मद्देनजर मंदिर में तैयारियां शुरू हो गयी हैं. वहीं आयोजकों के मुताबिक, इस बार श्री बड़ा हनुमान मंदिर में पिछले सालों की तुलना में ज्यादा संख्या में लंगूर दर्शन करने पहुंचेंगे।

लंगूर के कपड़े में बच्चे

पंडित जी ने बताया कि इस मंदिर का इतिहास कई सौ साल पुराना है और प्राचीन रीति-रिवाजों के अनुसार इस मंदिर में हर साल लंगूर मेला लगता है, जो शारदीय नवरात्रों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि पारंपरिक कपड़े पहनकर ही लंगूर भगवान हनुमान के पास माथा टेकने और उनका आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।

बैठे हुए हनुमान जी की दूसरी मूर्ति

उन्होंने कहा माता-पिता को भी सदियों से चली आ रही परंपरा के नियमों का पालन करना पड़ता है. पंडित जी ने बताया कि श्री हनुमान जी की बैठी हुई विश्व में केवल दो ही मूर्तियों में पाई जाती है. इनमें से एक श्री दुर्गियाना तीर्थ स्थित श्री बड़ा हनुमान मंदिर और इसके अलावा दूसरी मूर्ति मुंडारा में श्री हनुमानगढ़ी अयोध्या में विराजमान भगवान हनुमान जी की मंदिर है।

दुनिया में कहीं भी आपको ऐसी मूर्ति नहीं मिलेगी, जिसमें श्री हनुमान बैठे हुए मुद्रा में हों. अमृतसर का इतिहास रामायण काल ​​से भी जुड़ा है, जिसकी विरासत यहां के श्री हनुमान मंदिर से जुड़ी है, प्राचीन काल से आंसू के नरातों में लगने वाला लंगूर मेला विश्व प्रसिद्ध है, जिसे सजाकर माथा टेकने के लिए लाया जाता है।

रामायण काल से जुड़ी कहानी

रामायण काल ​​में जब भगवान श्री राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा तो लव और कुश ने इस घोड़े को पकड़कर बरगद के पेड़ से बांध दिया।

इस पर युद्ध के दौरान भगवान श्री राम चंद्र जी के सेवक श्री हनुमान जी भी इस स्थान पर पहुंचे थे. लव और कुश से बातचीत के दौरान श्री हनुमान जी को एहसास हुआ कि ये उनके प्रभु श्री राम जी की संतान हैं. वे प्रेम के कारण लव और कुश को कुछ नहीं कहते थे. लव और कुश ने श्री हनुमान को एक बरगद के पेड़ से बांध दिया।

माता सीता दौड़कर पहुंचीं

जब यह बात माता सीता जी को पता चली तो वह दौड़कर इस स्थान पर पहुंचीं. माता सीता जी ने लव और कुश से कहा कि श्री हनुमान जी उनके पुत्र के समान हैं।

इसलिए इन्हें खोला जाना चाहिए. खुलने के बाद वह जिस स्थान पर आकर बैठे, बाद में उनकी मूर्ति अपने आप प्रकट हो गई. इस पेड़ से श्री हनुमान को बांधा गया था. वह पेड़ आज भी यहां मौजूद है. जिन लोगों के घर में बेटा नहीं होता है, वे यहां आकर बरगद के पेड़ पर मूली बांधते हैं और मानते हैं कि उन्हें बेटे की प्राप्ति होगी।

जब उनके घर में बेटा पैदा होता है तो वे लंगूर का वेश धारण करके 10 दिनों तक सुबह-शाम श्री बड़ा हनुमान मंदिर में माथा टेकते हैं. दशहरे के अगले दिन यानी एकादशी को उसी स्थान पर कपड़े उतारे जाते हैं, जहां मौली बांधी गई थी।

पंडित जी ने बताया कि श्री दुर्गियाना कमेटी विदेश, दूसरे राज्यों या जिलों से बच्चों के लिए लंगूर बनाने आये श्रद्धालुओं के लिए लंगर की व्यवस्था करती है. उन्होंने कहा कि इस दौरान श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी न हो इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है. पंडित जी ने बताया कि जो श्रद्धालु जरूरतमंद हैं और अपने बच्चे के लिए लंगूर की पोशाक नहीं बना सकते, उन्हें श्री दुर्गियाना कमेटी की ओर से मुफ्त में पोशाक दी जाती है।