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बीमा कंपनियों को SC से झटका, कार-जीप वाले लाइसेंस से ड्राइवर चला सकेंगे हल्के ट्रांसपोर्ट वाहन

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सुप्रीम कोर्ट ने आज इस कानूनी सवाल पर फैसला सुनाया है

सुप्रीम कोर्ट ने आज इस कानूनी सवाल पर फैसला सुनाया है कि क्या लाइट मोटर व्हीकल (एलएमवी) का ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति 7500 किलोग्राम तक के बिना सामान वाले ट्रांसपोर्ट वाहन को चलाने के लिए भी योग्य है.
यह कानूनी सवाल दुर्घटना मामलों में बीमा कंपनियों की तरफ से मुआवजे के दावों के विवादों का कारण बन रहा था, जिनमें एलएमवी ड्राइविंग लाइसेंस धारकों की तरफ से ट्रांसपोर्ट वाहन चलाए जा रहे थे.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ इस पर फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एलएमवी लाइसेंस धारक 7500 किलोग्राम के भीतर वजन वाले परिवहन वाहन चला सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब बीमा कंपनियां ऐसे मामलों में क्लेम देने से इनकार नहीं कर सकतीं. सरकार शीतकालीन सत्र में एमवी एक्ट में इस पहलू को लेकर बदलाव करेगी. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ऐसे मामलों में एलएमवी लाइसेंस धारकों को जुर्माने या मुकदमे से राहत मिल जाएगी.
बीमा कंपनियों का क्या है तर्क?
बीमा कंपनियों का कहना था कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) और अदालतें उनके आपत्तियों की अनदेखी करते हुए उन्हें बीमा दावे का भुगतान करने के आदेश दे रही हैं. बीमा कंपनियों का कहना है कि अदालतें बीमा विवादों में बीमाधारकों के पक्ष में फैसला ले रही हैं.
तीन जजों की पीठ ने सुरक्षित रखा था फैसला
जस्टिस हृषिकेश रॉय, पी एस नरसिम्हा, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा वाली पीठ ने इस मुद्दे पर 21 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रखा था, जब केंद्र के वकील, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि मोटर वाहन (एमवी) अधिनियम, 1988 में संशोधन पर विचार-विमर्श लगभग पूरा हो चुका है.
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित संशोधन को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है और इसलिए अदालत ने इस मामले को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया. क्या लाइट मोटर व्हीकल (एलएमवी) के ड्राइविंग लाइसेंस धारक को 7,500 किलोग्राम तक वजन वाले ट्रांसपोर्ट वाहन को चलाने का अधिकार है, यही कानूनी सवाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
यह सवाल 8 मार्च 2022 को तीन
सदस्यीय पीठ की तरफ से संविधान पीठ को भेजा गया था, जिसमें जस्टिस यूयू ललित (अब सेवानिवृत्त) शामिल थे. यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के 2017 के मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामले से उठा था.
मुकुंद देवांगन मामले में, अदालत ने कहा था कि 7,500 किलोग्राम तक वजन वाले ट्रांसपोर्ट वाहन को एलएमवी की परिभाषा से बाहर नहीं किया गया है.
5 जजों की बेंच ने मामले को सुनते हुए कहा था कि 2017 के फैसले के साथ तालमेल बैठाने के लिए सरकार ने नियमों में कुछ बदलाव किए थे. यह जानना जरूरी है कि क्या सरकार कानून में संशोधन करना चाहती है?
कानून के सामाजिक असर को भी समझना है जरूरी- SC
केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी ने कहा था कि मोटर व्हीकल एक्ट 1988 में कई बदलाव प्रस्तावित हैं. संसद के शीतकालीन सत्र में उन्हें पेश किया जा सकता है.
इस पर कोर्ट ने कहा था कि देश में लाखों ड्राइवर देवांगन केस के फैसले के आधार पर काम कर रहे हैं. यहां सिर्फ कानून का सवाल नहीं है. कानून के सामाजिक असर को भी समझना जरूरी है, ताकि लोगों के सामने मुश्किल न खड़ी हो.
बजाज आलियांज की तरफ से मुख्य याचिका दायर
इस फैसले को केंद्र सरकार ने स्वीकार किया और मोटर वाहन अधिनियम के नियमों को इस निर्णय के अनुरूप संशोधित किया गया. 18 जुलाई को संविधान पीठ ने इस कानूनी सवाल पर 76 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की.
मुख्य याचिका बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की तरफ से दायर की गई थी. मोटर वाहन अधिनियम कई प्रकार के वाहनों के लिए अलग-अलग लाइसेंस देने के प्रावधान करता है.
मामले को बड़ी पीठ को भेजते समय कहा गया कि कुछ कानूनी प्रावधानों को मुकुंद देवांगन निर्णय में ध्यान नहीं दिया गया था और इस विवाद का पुनः विचार आवश्यक है.

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