Home haryana दलितों पर आकर टिका Election, चारों तरफ शोर, बड़ा सवाल-जाएंगे किस ओर

दलितों पर आकर टिका Election, चारों तरफ शोर, बड़ा सवाल-जाएंगे किस ओर

8
0

हरियाणा विधानसभा चुनाव पूरी तरह से दलितों पर आकर टिक गया है। ऐसा कोई भी दल नहीं बचा है, जो दलित वोट बैंक को नहीं साधना चाह रहा है। जाटों के लिए जाने जाने वाले हरियाणा में ये पहली बार है कि चुनाव में पूरा शोर दलित वोट बैंक को लेकर है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक दलितों को साधने के लिए ताकत लगा रहे हैं। वहीं, कांग्रेस की ओर से मोर्चा राहुल गांधी संभाल रहे हैं और दोबारा से उन्होंने संविधान बचाने का नारा दे दिया है। इनेलो-बसपा, जजपा-आजाद समाज पार्टी भी दलितों पर नजर गड़ाए बैठे हैं। इस चुनावी शोर के बीच खुद दलित मतदाता संशय में आ गया है कि वह किस दल के साथ जाए। किसी एक दल की ओर जाने के बजाय इस बार दलित वोट बैंक बंटने की आशंका है।

लोकसभा चुनाव में झुका था कांग्रेस की तरफ

लोकसभा चुनाव में संविधान बदलने के नारे के चलते दलित वोट बैंक भाजपा से खिसक कर कांग्रेस के पाले में आया था और इससे कांग्रेस को पांच सीटें मिली थीं। इसके बाद से भाजपा अलर्ट हो गई। विधानसभा चुनाव में भाजपा दलितों को लेकर कांग्रेस पर हमलावर है। एक-एक करके कांग्रेस राज में हुए दलित कांडों को याद कराया जा रहा है। पीएम मोदी से लेकर सीएम सैनी तक सभी यही दोहरा रहे हैं। इधर, राहुल गांधी ने फिर से संविधान बचाने का राग अलापा है।

दलित वोट बैंक को अपना परंपरागत वोट मानने वाली बसपा इस बार इनेलो के साथ है और खुद मायावती प्रचार में उतर अनुसूचित जाति के लोगों से वोट की अपील कर रही हैं। इनके अलावा जजपा आजाद समाज पार्टी से गठजोड़ करके दलितों की वोट चाह रही है। विधानसभा चुनाव में पहली बार दलितों के नाम का शोर है, देखना ये है कि यह समाज जाता किस ओर है।

एससी में वर्गीकरण बड़ा मुद्दा

लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति का वर्गीकरण मुद्दा नहीं था, लेकिन अब विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हरियाणा सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी है और वादा किया है कि वह वर्गीकरण करेगी। इससे दलितों में एक समाज पूरी तरह से नाराज है, जबकि अन्य जातियां इसका समर्थन कर रही हैं। वर्गीकरण के अनुसार, एससी में दो श्रेणियां बनाई जाएंगी, जिन्होंने आरक्षण का लाभ लिया और जिन्होंने नहीं लिया। ऐसे में 20 प्रतिशत आरक्षण को 10:10 प्रतिशत आरक्षण में बांटने की प्रस्ताव है, लेकिन इसको लेकर दलित वोट बैंक अलग-अलग पार्टियों के साथ जा रहा है।

पदोन्नति में आरक्षण का नहीं मिला लाभ

अनुसूचित जाति के लोगों को पदोन्नति में आरक्षण भी बड़ा मुद्दा है। सरकार की तरफ से इसके लिए नोटिफिकेशन जारी किया गया और धन्यवादी कार्यक्रम भी कराए गए। लेकिन आज तक अनुसूचित जाति के कर्मचारियों और अधिकारियों को पदोन्नति में लाभ नहीं मिला है। कई विभागों की पदोन्नति सूची लंबित हैं। इस मामले में एक याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में है, जिसके चलते हजारों कर्मचारियों की पदोन्नति अटकी है। इससे खासकर कर्मचारी व अधिकारी वर्ग नाराज है।

कुमारी सैलजा और सीएम चेहरा

इस चुनाव में कुमारी सैलजा भी बड़ा मुद्दा है। सैलजा विधानसभा चुनाव लड़ना चाह रही थीं, लेकिन हाईकमान ने टिकट नहीं दिया। दूसरा, नारनौंद में एक व्यक्ति द्वारा कुमारी सैलजा के बारे में जातिगत टिप्पणी करने से समाज में बड़ी नाराजगी है। इसके साथ ही सैलजा कई बार कह चुकी हैं कि प्रदेश का सीएम दलित होना चाहिए। इससे भी दलित समाज के लोगों में आशा और निराशा दोनों हैं। क्योंकि कांग्रेस ने किसी को भी सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है। इससे नाराज सैलजा दस दिनों तक प्रचार से दूर रहीं और बाद में हाईकमान ने उनको मनाया।

लोकसभा चुनाव का परिणाम देख सतर्क हुई भाजपा : चाहर

ये सही है कि इस बार दलित मतदाताओं को लेकर सभी राजनीतिक दल खुलकर बोल रहे हैं, ताकि उनका समर्थन हासिल किया जा सके। इससे पहले ऐसा कम होता रहा है। दलित वोट बैंक को कांग्रेस और बसपा का परंपरागत वोट माना जाता रहा है। लोकसभा चुनाव में जाट और अनुसूचित जाति का गठजोड़ बनने से कांग्रेस को जो लाभ हुआ, उससे भाजपा सतर्क हुई है। इसलिए ही लगातार दलितों के मुद्दों को उठाया जा रहा है, लेकिन ये मानकर चलिए इस बार चुनाव जात-पात का नहीं होगा। -एसएस चाहर, रिटायर्ड प्रोफेसर (लोक प्रशासन), एमडीयू।